Control of diseases in plant and Sources of plant diseases

        Control of diseases in plant 


बीमारियों का नियन्त्रण

पौधों में बीमारियों से उत्पादन में हानि 1-100०/० तक हो सकती है इसके अतिरिक्त इसके उत्पादन की गुणता  गिरती है। इस प्रकार की हानियाँ, अन्न वाली फसलों, दलहन, तिलहन, रेशे चाली; सब्जियों, फलों ब अन्य सभी प्रकार की फसलों में होती हैं। राई व बाजरे क्री फसल मै अर्गत नामक बीमारी होने पर मनुष्य ब पशुओँ के लिये इनका उत्पादन विवैला व घातक हो सकता है। यहाँ तक कि अर्गट ग्रस्त फसल के दानों क्रो खाने से मनुष्य तथा पशुओ में गर्भपात हो जाता है। बिमारियों के कारण परोक्ष रूप में कृषक की आर्थिक दशा पर प्रभाव पड़ता है। उत्पादन कम होना, गुणता गिरना या बीमारियों से बचाने के लिये, दवाई मशीनों; व इनके स्थान (शेड) पर खर्च फसलों पर किये गये खर्च से , किसान का शुद्ध लाभ कम होता है। संग्रहालयों मेँ कीट-पतंगों के प्रभाव के कारण कभो-कभी किसान क्रो अपना उत्पादन शीघ्र बेचना पड़ता है और कम लाभ प्राप्त होता है। ,
अपने देश में चौथी पंचवर्षीय योजना तैयार करते समय यह अनुमान लगाया गया था कि 10% अन्न  बीमारियों के कारण नष्ट हो जाता है। 2003 में इस हानि की कीमत 2300 करोड रुपये आँकी गयी थी।
भिन्न-भिन्न फसलों पर अलगअलग प्रकार कौ बीमारियों का आक्रमण होता है। बीमारियों द्वारा सम्पूर्ण पौधा या पौधे का कोई भाग प्रभावित हो सकता है। पौधे के रोग , कई प्रकार के रोगजनकों  जैसे बैक्टीरिया; कवक, वायरसों या प्राकृतिक जैसे कम या अधिक ताप से मृदा में नमी की कमी या अधिकता या मृदा में किसी तत्व  कमी या अधिकता या भूमि के अन्य विकार जैसे अमलीयता व क्षारीयता के कारण पैदा होते हैं। रोगजनकों द्वारा रोग, वायु, जल, बीज व रोगी पौधो के कन्दो टुकडों , पशुओं, मनुष्यों या मृदा के द्वारा फैलता है। वायरस रोग अधिकतर कीटों द्वारा फैलता है1

'                  पादप रोग के स्रोत

पादप रोगों को उनके फैलने के प्रकार के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त करते हैं"
(1) बीजों सै फैलने वाले ( बीजोढ़ )
(2) मृदा से फैलने वाले ( मृदोढ़ ) 
(3) हवा से फैलने वाले ( वात्तोंढ़ )

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