Improved Dry Farming Method

                        उन्नत शुष्क खेती विधि

               (Improved Dry Farming Method)

(1) भारतवर्ष में विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों पर परिणामों के आधार पर उन्नत शुष्क कृषि के लिये खेत का ग्रीष्म ऋतु में एक गहरी जुताई करना आवश्यक है ताकि वर्षा में खेत अधिक पानी सोख सके। खरीफ की फसल कटने के तुरन्त बाद, खेत का जोतना, रबी फसल के लिये मृदा नमी संरक्षण में अत्यन्त लाभदायक हैं। इसके तुरन्त बाद पाटा लगाना भी आवश्यक है तथा रबी के लिये खेती की तैयारी (Seed bed) अच्छी महीन  करनी आवश्यक है फसलों को मेड़ व नालियों में बोना व पलवार (मल्च) का प्रयोग करना चाहिये ।

(2) मेडबन्दी द्वारा खेतों को छोटी-छोटी क्यारियों में विभाजित कर देना चाहिये। मेड़ कम से कम 25 सेमी ऊँची होनी चाहिये।

3) खेत में खरपतवार नष्ट करने व भूमि की भौतिक दशा सुधारने हेतु प्रत्येक वर्षा के बाद जुताई करना चाहिये। इससे मृदा जल की वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन से होने वाली हानि को बचा सकते हैं।

4) सूखा सहन करने वाली; जैसे—मंडुआ, ज्वार, बाजरा, चना, जौं व अलसी आदि की खेती करनी चाहिये।

(5) शुष्क क्षेत्रों में पैदा हुए बीजों की ही बुवाई, शुष्क खेती के क्षेत्रों में करनी चाहिये। शुष्क क्षेत्रों में खरीफ की फसल सदैव जून के अन्त या जुलाई के प्रारम्भ में वर्षा प्रारम्भ होते ही बो देनी चाहिये। रबी की
फसलें इन क्षेत्रों में वर्षा समाप्त होते-होते बो देनी चाहिये।
(6) बीज की दर कम रखनी चाहिये।
(7) बीज की लाइनों में बुवाई करके पाटा लगाना चाहिये जिससे कि बीज नमी के सम्पर्क में अच्छी प्रकार आ जाये।
(8) खरीफ की फसलों की बुवाई 10-12 सेमी गहरे व कतारों की दूरी 40-45 सेमी रखनी चाहिये व रबी की फसलों की कतारों की दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिये व भूमि में 12-15 सेमी गहरा बोना चाहिये।

बीज सदैव नमी के सम्पर्क में पंक्तियों में हल के पीछे बोते हैं या बुआई के लिये सीडड्रील मशीन का प्रयोग उपयोगी है। बोने के बाद पाटा चलाना बहुत ही आवश्यक है ताकि बीज नमी के सम्पर्क आ जाये।
हिसार निर्मित रीजर सीडर (Ridger seeder) भी बुआई के लिये उपयुक्त है।

(9) खड़ी फसल में 1-2 निकाई-गुड़ाई लाभदायक है। ऐसा करने से भूमि में नमी की सुरक्षा होती है। व खरपतवार नष्ट होते हैं जिससे फसल के पौधों के लिये नमी व पोषक तत्व अधिक संचित रहते हैं।

(10) मृदा जलधारण शक्ति बढ़ाने के लिये जीवांश खादों को डालना चाहिये। बलुई भूमियों में चिकनी मृदा भी मिला सकते हैं।

(11) जिन क्षेत्रों में 35-45 सेमी वार्षिक वर्षा होती है वहाँ पर दो वर्ष में एक फसल लेना लाभदायक है।

(12) ढाल पर कण्ट्रर विधि से खेती करनी चाहिये।
(13) अधिक ढाल पर वेदिकायें लाभदायक हैं।
(14) ढालू भूमियों में पट्टियों में खेती लाभदायक है।
(15) भूमि-क्षरण अरोधी व अवरोधी फसल को फसल चक्र में रखना चाहिये।
(16) मिश्रित खेती का प्रयोग शुष्क क्षेत्रों में लाभदायक है।

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