देश के 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण

 देश के 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण :- इंदिरा जी के कार्यकाल की बड़ी जीत।


जहां आज देश की सरकार और प्रधानमंत्री देश की हर धरोहर को बेचने और किराये पर देने को अमादा हैं,

देश के तमाम सरकारी बैंकों को प्राइवेट हाथों में देने को तैयार है, इन्हीं सरकारी बैंकों की बदोलत आज भारत इस मुकाम तक पहुंचा है, बात 1969 से पहले की है जब देश में सभी बैंक प्राइवेट थे, और वह सभी देश के बड़े घरानों के हाथ में थे जिसमें देश का गरीब, किसान, मजदूर जाने तक का नहीं सोच सकता था। बैंक प्राइवेट थे, इसलिए वह उन्हीं सेक्टर में पैसा लगाते थे, जहां से उन्हें ढेर सारा मुनाफा मिल सके। वहीं इंदिरा जी सामाजिक, कृषि, लघु उद्योग और निर्यात जैसे सेक्टर में इन पैसों का इस्तेमाल करना चाहती थीं। 19 जुलाई 1969 को देश की प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जी के एक फैसले से देश के आम लोगों में खुशी की एक लहर दौड़ गई, वह फैसला देश के 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का था, उन बैंकों में देश के लोगों का 70% धन जमा था, मोरारजी देसाई इंदिरा जी के इस फैसले से न खुश थे, लेकिन इंदिरा जी ने देश की जनता के हित में यह फैसला लिया, देखा जाए तो बैंकों के राष्ट्रीयकरण से कई फायदे हुए राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की शाखाओं की संख्या में तेजी देखने को मिली। पहले जो बैंक सिर्फ शहरों में अपनी सेवाएं देते थे, अब उन्होंने गांव-देहात का भी रुख कर लिया। शाखाएं बढ़ने और अधिक लोगों तक पहुंच होने के चलते बैंकों के पास ढेर सारा पैसा जमा हो गया, जिसे बाद में लोन की तरह बांटा गया। इससे तमाम उद्योग धंधे भी बढ़े और रोजगार भी पैदा हुआ। साल 1969 के पहले जहां अमेरिका में गेहूं आयात करना पड़ता था, वहीं आज सरकारी गोदाम अनाज से भरे हैं। कृषि क्षेत्र में यह विकास केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों के दम पर संभव हो सका है।

- आकाश पाराशर  

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